SHRI KRISHNA JANAMASHTAMI SPECIAL - TEACHINGS OF SHRI KRISHNA

भगवान श्री कृष्ण की शिक्षाएँ समय और संस्कृति से परे हैं व जीवन के बारे में गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं, विशेषकर आज के अभ्यर्थियों के जीवन में ये अत्यधिक प्रासंगिक हैं। ये शिक्षाएँ समय और संस्कृति से परे, एक सार्थक व उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती हैं। आइए श्री कृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर श्री कृष्ण की शिक्षाओं के महत्त्व पर गौर करें कि वे व्यक्तिगत विकास की दिशा में हमारा मार्गदर्शन कैसे कर सकती हैं।

कर्म की अवधारणा:

श्री कृष्ण की शिक्षाओं के केंद्र में कर्म की अवधारणा है, जिसे अक्सर परिणाम की आशा नहीं रखना समझ लिया जाता है। श्री कृष्ण हमें अपने कर्मों के फल से अलग होकर, निःस्वार्थ भाव से कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। यह मुख्य शिक्षा परिणाम पर ध्यान देने के बजाय कार्य पर ध्यान केंद्रित करने का आग्रह करती है। ऐसा करने से, व्यक्ति सफलता और विफलता दोनों में समभाव बनाए रख सकता है व मानसिक शांति व संतुष्टि की स्थिति प्राप्त कर सकता है।

ज्ञान की खोज:

श्री कृष्ण स्वयं और ब्रह्मांड को समझने के साधन के रूप में ज्ञान प्राप्त करने के महत्व पर जोर देते हैं। वह इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि सच्चा ज्ञान आत्म-परीक्षण व आत्म-चिंतन से उत्पन्न होता है। श्री कृष्ण की शिक्षाएँ चेतना की गहराई का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं, जिससे अपने सर्वोच्चतम लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके।

योग और ध्यान:

श्री कृष्ण ने भगवद गीता में योग के विभिन्न मार्गों का परिचय दिया है- जिनमें कर्म योग (निःस्वार्थ कर्म का योग), भक्ति योग (भक्ति का योग), और ज्ञान योग (ज्ञान का योग) शामिल हैं। ये मार्ग आध्यात्मिक विकास के लिए विविध दृष्टिकोण प्रदान करते हैं, जिससे व्यक्ति को अपने स्वभाव व सुविधा के अनुरूप मार्ग चुनने की स्वतंत्रता मिलती है। 

ईश्वर के प्रति समर्पण:

श्री कृष्ण अटूट विश्वास और भक्ति के साथ स्वयं को परमात्मा के प्रति समर्पित करने के लिए कहते हैं - यह समर्पण कमजोरी का प्रतीक नहीं है बल्कि ब्रह्मांड को नियंत्रित करने वाली सर्वोच्च शक्ति की स्वीकृति है। दैवीय इच्छा के प्रति समर्पण करके व्यक्ति स्वयं को अहंकार, इच्छा, सफलता व असफलता के बोझ से मुक्त कर सकता है।

शाश्वत आत्मा:

श्री कृष्ण की सबसे गहन शिक्षाओं में से एक अवधारणा आत्मा के शाश्वत होने की है। वह सिखाते हैं कि शरीर नाश्वर है लेकिन आत्मा अजर व अमर है - जन्म और मृत्यु से परे है। यह समझ मृत्यु के भय को कम करती है व जीवन का खुल कर आनंद लेने की प्रेरणा देती है।

निष्कर्ष

श्री कृष्ण की शिक्षाओं के माध्यम से धर्म, वैराग्य, निस्वार्थता और ज्ञान की खोज के सिद्धांतों को अपनाकर, व्यक्ति जीवन की समस्याओं से निपट सकते हैं व आत्म-प्राप्ति और आध्यात्मिक विकास की दिशा में एक परिवर्तनकारी यात्रा शुरू कर सकते हैं। श्री कृष्ण का ज्ञान उन सभी के लिए प्रेरणा व मार्गदर्शन का एक कालातीत स्रोत बना हुआ है जो एक उद्देश्यपूर्ण व ज्ञानोदय का जीवन जीना चाहते हैं। आज के अभ्यर्थी भी इस से प्रेरणा ले सकते हैं व स्वयं को सफलता व असफलता के बोझ से मुक्त कर सकते हैं।


#ScholarsDen wishes a very happy Krishna Janmashtami to all!



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